Wednesday, June 29, 2011

आज़ाद पुलिस की उड़ीसा यात्रा

उड़ीसा यात्रा की योजना - Top-6मुंबई जा कर पुलिस और प्रशासन की स्थिति देखने के बाद अपने शहर गाज़ियाबाद से बाहर अन्य शहरों में जाकर पुलिस की स्थिति और व्यवस्था को देखने समझने की मेरी इच्छा और बढ़ गयी थी. इसी सोच के तहत मैने निश्चय किया कि इस बार उड़ीसा के पुरी शहर की तरफ अपना अभियान मोड़ा जाय. मेरी ससुराल भी उड़ीसा में ही है जहाँ मै शादी के बाद कभी नहीं गया था. 18 साल हो गए थे मुझे और मेरी पत्नी को वहाँ गए हुए.  हम लोग २९-०५-२०११ को भुवनेश्वर स्टेशन पर उतरे तो  मेरा साला और उसके बच्चे हमें लेने स्टेशन आये थे. हम लोग जब गाँव बालिकंद पहुँचे तो सबको हमारे आने की बड़ी खुशी हुई क्योकि हम १८ साल बाद वहाँ गए थे और लोगों को यह भी नहीं पता था कि हम जिंदा हैं कि मर गए. रिश्तेदार दूर दूर से मिलने आने लगे… इसी में कई दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला.
तिरंगा गुटखा इधर भी -   Top-3जैसा कि पत्र लिख कर पहले ही पुरी के जिलाधिकारी और एस एस पी महोदय को सूचित किया था, मुझे पुलिस की कमियों की तरफ प्रशासन का ध्यान दिलाना था. बच्चों की बीमारी के कारण कुछ दिन तो व्यस्त रहा लेकिन एक दिन जब पुरी शहर पहुँचा तो देखा कि पान की दूकान पर “तिरंगा" गुटखा लटका हुआ था. देखते ही मेरा खून खौल उठा क्योंकि पिछले पाँच छह साल से एक गुटखे का नाम तिरंगा रखने के विरोध में मै सरकार से संघर्ष कर रहा हूँ लेकिन न तो आज तक कहीं इसकी सुनवाई हुई है और न ही कोई कार्यवाही… आज भी लोग गुटखे के रूप में तिरंगे पर थूक रहे हैं.. तिरंगा खा कर लोग उसे नालियों में कूड़ेदानों में फेंक देते हैं जिससे तिरंगे का अपमान होता है लेकिन सरकार को सिर्फ अपने टैक्स वसूलने से मतलब है उसे तिरंगे की इज्ज़त और जनता की भावनाओं का कोई ख़याल नहीं है . मुझे बहुत दुःख हुआ कि तिरंगे के नाम पर नशीली चीज़े बेचीं जा रही हैं और सरकार सैकड़ों बार पत्र लिखने के बाजूद कोई सुनवाई नहीं कर रही है.
पुलिस की हालत-AP1 पुरी शहर में घूमते हुए मैंने पाया कि पुलिस अपनी ड्यूटी के प्रति बहुत लापरवाह दिखी. पुलिस के सिपाही आधी अधूरी वर्दी में इधर उधर घूमते दिखे. मैंने अपने मिशन के अनुसार कई पुलिस वालों को पकड़ा और चालान काटने का भी प्रयास किया लेकिन उन्होंने चालान कटवाने से मना कर दिया. बच्चों की तबियत खराब होने के कारण मै ज्यादा जोर जबरदस्ती भी नहीं कर पाया. अगर मेरे पास कैमरा होता तो मै पुलिस की कारगुजारियों को ज़रूर कैद करता और सबके सामने पेश करता. इस तरह बिना कैमरे के मेरे पास पुलिस और प्रशासन के खिलाफ़ कोई सबूत इकठ्ठा करने का कोई जरिया नहीं था.

द्वारिकाधीश मंदिर की व्यवस्था -Top-7दिनांक १६-०६-२०११ को हम परिवार के साथ समुद्र के किनारे कोणार्क मंदिर गए. मंदिर पहुँचने पर पता चला कि सरकार ने मंदिर में घुसने के लिए दस रूपये का टिकट भी लगा रखा था. देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि सरकार ने भगवान को भी पैसा कमाने का जरिया बना रखा है. आस्था और पूजा अर्चन करने के लिए भी हमें टिकट लेना पड़ता है. लोग भगवान को भी नुमाइश और आस्था को बाजारू चीज़ बनाने में भी संकोच नहीं करते हैं. मंदिर के अंदर जूते चप्पल को सुरक्षित रखने की कोई व्यवस्था नहीं थी… इतने प्राचीन और भव्य मंदिर में लोगों को जूते पहन कर जाने के लिए कोई रोकटोक नहीं थी. वहाँ तो ऐसा लग रहा था हम मंदिर नहीं बल्कि किसी दर्शनीय स्थल या नुमाइश को देखने आये हैं. हमें इस बात का बहुत कष्ट हुआ कि हम मंदिर में भी जूते पहन कर खड़े हुए थे.लोग इस मंदिर को देखने दूर दूर से आते हैं, लोगों के दिलों में इस मंदिर का बहुत सम्मान भी है लेकिन इस व्यवस्था से मन दुखी हो जाता है.  
आसपास के घरों में प्रथा है कि लोग घरों में भी अपने जूते लेकर नहीं जाते हैं… हर घर में ठाकुर की पूजा होती है. घर में घुसने से पहले लोग पैर धोते हैं और पवित्रता से रहते हैं लेकिन मुख्य मंदिर में व्यवस्था देख कर लगा जैसे हम मंदिर में नहीं किसी बाज़ार में घूमने आये हैं. हम उड़ीसा सरकार और मंदिर प्रबंधन से अनुरोध करेंगे कि कम से कम मंदिर में टिकट लगा कर पैसा कमाना बंद करे और एक जूता स्टैंड तो बनवा ही दे जिससे कि लोगों की भावनाओं को ठेस न पहुँचे. मै आज़ाद पुलिस इसके लिए उड़ीसा सरकार और मंदिर प्रबंधन को लगातार पत्र लिख कर अनुरोध करता रहूँगा.
भ्रष्टाचार का आन्दोलन -P300111_13.02_thumb[1] धीरे धीरे यहाँ मुझे २२-२३ दिन हो चुके थे.  टीवी पर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अन्ना और बाबा रामदेव की लड़ाइयों की खबर छाई हुई थी.  भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में मेरी जितनी समझ है उसके अनुसार भ्रष्टाचार मंच पर खड़े होकर या धरने प्रदर्शन करने से खतम होने वाला नहीं है. इसके लिए जब तक आम जनता के बीच ज़मीनी लड़ाई नहीं लड़ी जायेगी भ्रष्टाचार का खतम होना मुश्किल है. बाबा कहते हैं भ्रष्टाचारी को फाँसी लगाओ. लेकिन फाँसी कौन लगायेगा. इस देश में रोज़ नए  क़ानून बनते हैं लेकिन उनका क्या असर होता है ये सबको पता है. क्योंकि सत्ता के घर में सारे क़ानून खूँटी पर टंगे हुए हैं. जहाँ अपना हित दिखाई देता है सरकार क़ानून का इस्तेमाल करती है. जहाँ जनता की बात आती है उसी क़ानून के जरिये उस आवाज़ को कुचल दिया जाता है. जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं वही नेता भ्रष्टाचार के खिलाफ़ क़ानून भी बनाते हैं ऐसे में भ्रष्टाचार खतम होने की कोई गुंजाइश नहीं है. जो पुलिस अत्याचार के खिलाफ़ बनाई गयी है वही पुलिस खुद अनुशासित नहीं है और अत्याचार करती है ऐसे में भ्रष्टाचार कैसे खतम होगा. ऐसे में एक ही तरीका है और वो है जनता द्वारा जनता के बीच में खुली लड़ाई. न हम भ्रष्टाचार करेंगे और न सहेंगे. तभी कोई परिणाम सामने आ सकता है.
P100710_10.16मै आज़ाद पुलिस अकेले बिना किसी के सहयोग से रिक्शा चला कर जो भी कमाई होती है उसी से प्रशासन और पुलिस में फैले भ्रष्टाचार और अनाचार के खिलाफ़ लड़ाई लड़ता हूँ. पुलिस वालों के चालान काटता हूँ. इस अकेले अदना से रिक्शा चलाने वाले से गाजियाबाद की पुलिस भी घबराती है क्योंकि सच्चाई और संघर्ष  में बड़ी ताकत होती है. एक बार ठान के तो देखिये . http://azadpolice.blospot.com

ब्रह्मपाल सिंह

संस्थापक आज़ाद पुलिस

बरात घर, विकलांग कालोनी

नन्द ग्राम गाज़ियाबाद


Monday, June 6, 2011

आज़ाद पुलिस की अगली मुहिम उड़ीसा में

P180710_12.24_[01]गाज़ियाबाद में पुलिस और प्रशासन के भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने संघर्ष के पश्चात पिछले महीने मुंबई में अपनी मुहिम से लौटने के बाद आज़ाद पुलिस ब्रह्मपाल ने अपने अभियान को आगे बढाते हुए उड़ीसा के पुरी शहर को अपना नया ठिकाना बनाया है. आज़ाद पुलिस ब्रह्मपाल ने पुरी में अपनी मुहिम को १०-०६-२०१११ से प्रारम्भ करने का निश्चय् किया है. यहाँ पर अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार पुलिस व्यवस्था का जायजा लेने के साथ साथ आज़ाद पुलिस द्वारा  अपनी ड्यूटी के प्रति, अपने नियम कानूनों के प्रति उदासीन पुलिस वालों के चालान भी काटे जायेंगे और वहाँ के कमिश्नर को इनसे अवगत कराया जाएगा… इस सम्बन्ध में आज़ाद पुलिस ने पहले ही उड़ीसा सरकार, पुलिस विभाग और अन्य विभागों को पत्र लिख कर अवगत करा दिया है…