Monday, November 14, 2011

मुनाफाखोरी के लिए सैनिकों का अपमान


लचर और असंवेदनशील सरकारी व्यवस्थाओं और अधिकारियों की मनमानी नौकरशाही व्यवस्था के चलते देश मे पूंजीवादियों और मुनाफाखोरों की पौ-बारह है। पहले तिरंगे के नाम पर नशे के लिए प्रयुक्त  पान मसाला का नाम रखने की अनुमति दे दी गयी जिसके लिए आजादपुलिस कई सालों से संघर्षरत है। पिछले दिनों एक प्लाइवुड की दुकान मे सैनिक प्लाइवुड का स्टिकर पैरों तले कुचला जाता हुआ देख कर लगा कि इन मुनाफाखोरों को पैसा कमाने के अतिरिक्त देश और देश भक्त सैनिकों के प्रति कोई सम्मान नहीं है। इस संबंध मे आज़ाद पुलिस द्वारा घोर आपत्ति और विरोध किया जा रहा है। हम सैनिकों और तिरंगे का अपमान नहीं सह सकते...

Sunday, September 4, 2011

एक पत्र अन्ना जी के नाम

Top-1

Wednesday, June 29, 2011

आज़ाद पुलिस की उड़ीसा यात्रा

उड़ीसा यात्रा की योजना - Top-6मुंबई जा कर पुलिस और प्रशासन की स्थिति देखने के बाद अपने शहर गाज़ियाबाद से बाहर अन्य शहरों में जाकर पुलिस की स्थिति और व्यवस्था को देखने समझने की मेरी इच्छा और बढ़ गयी थी. इसी सोच के तहत मैने निश्चय किया कि इस बार उड़ीसा के पुरी शहर की तरफ अपना अभियान मोड़ा जाय. मेरी ससुराल भी उड़ीसा में ही है जहाँ मै शादी के बाद कभी नहीं गया था. 18 साल हो गए थे मुझे और मेरी पत्नी को वहाँ गए हुए.  हम लोग २९-०५-२०११ को भुवनेश्वर स्टेशन पर उतरे तो  मेरा साला और उसके बच्चे हमें लेने स्टेशन आये थे. हम लोग जब गाँव बालिकंद पहुँचे तो सबको हमारे आने की बड़ी खुशी हुई क्योकि हम १८ साल बाद वहाँ गए थे और लोगों को यह भी नहीं पता था कि हम जिंदा हैं कि मर गए. रिश्तेदार दूर दूर से मिलने आने लगे… इसी में कई दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला.
तिरंगा गुटखा इधर भी -   Top-3जैसा कि पत्र लिख कर पहले ही पुरी के जिलाधिकारी और एस एस पी महोदय को सूचित किया था, मुझे पुलिस की कमियों की तरफ प्रशासन का ध्यान दिलाना था. बच्चों की बीमारी के कारण कुछ दिन तो व्यस्त रहा लेकिन एक दिन जब पुरी शहर पहुँचा तो देखा कि पान की दूकान पर “तिरंगा" गुटखा लटका हुआ था. देखते ही मेरा खून खौल उठा क्योंकि पिछले पाँच छह साल से एक गुटखे का नाम तिरंगा रखने के विरोध में मै सरकार से संघर्ष कर रहा हूँ लेकिन न तो आज तक कहीं इसकी सुनवाई हुई है और न ही कोई कार्यवाही… आज भी लोग गुटखे के रूप में तिरंगे पर थूक रहे हैं.. तिरंगा खा कर लोग उसे नालियों में कूड़ेदानों में फेंक देते हैं जिससे तिरंगे का अपमान होता है लेकिन सरकार को सिर्फ अपने टैक्स वसूलने से मतलब है उसे तिरंगे की इज्ज़त और जनता की भावनाओं का कोई ख़याल नहीं है . मुझे बहुत दुःख हुआ कि तिरंगे के नाम पर नशीली चीज़े बेचीं जा रही हैं और सरकार सैकड़ों बार पत्र लिखने के बाजूद कोई सुनवाई नहीं कर रही है.
पुलिस की हालत-AP1 पुरी शहर में घूमते हुए मैंने पाया कि पुलिस अपनी ड्यूटी के प्रति बहुत लापरवाह दिखी. पुलिस के सिपाही आधी अधूरी वर्दी में इधर उधर घूमते दिखे. मैंने अपने मिशन के अनुसार कई पुलिस वालों को पकड़ा और चालान काटने का भी प्रयास किया लेकिन उन्होंने चालान कटवाने से मना कर दिया. बच्चों की तबियत खराब होने के कारण मै ज्यादा जोर जबरदस्ती भी नहीं कर पाया. अगर मेरे पास कैमरा होता तो मै पुलिस की कारगुजारियों को ज़रूर कैद करता और सबके सामने पेश करता. इस तरह बिना कैमरे के मेरे पास पुलिस और प्रशासन के खिलाफ़ कोई सबूत इकठ्ठा करने का कोई जरिया नहीं था.

द्वारिकाधीश मंदिर की व्यवस्था -Top-7दिनांक १६-०६-२०११ को हम परिवार के साथ समुद्र के किनारे कोणार्क मंदिर गए. मंदिर पहुँचने पर पता चला कि सरकार ने मंदिर में घुसने के लिए दस रूपये का टिकट भी लगा रखा था. देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि सरकार ने भगवान को भी पैसा कमाने का जरिया बना रखा है. आस्था और पूजा अर्चन करने के लिए भी हमें टिकट लेना पड़ता है. लोग भगवान को भी नुमाइश और आस्था को बाजारू चीज़ बनाने में भी संकोच नहीं करते हैं. मंदिर के अंदर जूते चप्पल को सुरक्षित रखने की कोई व्यवस्था नहीं थी… इतने प्राचीन और भव्य मंदिर में लोगों को जूते पहन कर जाने के लिए कोई रोकटोक नहीं थी. वहाँ तो ऐसा लग रहा था हम मंदिर नहीं बल्कि किसी दर्शनीय स्थल या नुमाइश को देखने आये हैं. हमें इस बात का बहुत कष्ट हुआ कि हम मंदिर में भी जूते पहन कर खड़े हुए थे.लोग इस मंदिर को देखने दूर दूर से आते हैं, लोगों के दिलों में इस मंदिर का बहुत सम्मान भी है लेकिन इस व्यवस्था से मन दुखी हो जाता है.  
आसपास के घरों में प्रथा है कि लोग घरों में भी अपने जूते लेकर नहीं जाते हैं… हर घर में ठाकुर की पूजा होती है. घर में घुसने से पहले लोग पैर धोते हैं और पवित्रता से रहते हैं लेकिन मुख्य मंदिर में व्यवस्था देख कर लगा जैसे हम मंदिर में नहीं किसी बाज़ार में घूमने आये हैं. हम उड़ीसा सरकार और मंदिर प्रबंधन से अनुरोध करेंगे कि कम से कम मंदिर में टिकट लगा कर पैसा कमाना बंद करे और एक जूता स्टैंड तो बनवा ही दे जिससे कि लोगों की भावनाओं को ठेस न पहुँचे. मै आज़ाद पुलिस इसके लिए उड़ीसा सरकार और मंदिर प्रबंधन को लगातार पत्र लिख कर अनुरोध करता रहूँगा.
भ्रष्टाचार का आन्दोलन -P300111_13.02_thumb[1] धीरे धीरे यहाँ मुझे २२-२३ दिन हो चुके थे.  टीवी पर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अन्ना और बाबा रामदेव की लड़ाइयों की खबर छाई हुई थी.  भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में मेरी जितनी समझ है उसके अनुसार भ्रष्टाचार मंच पर खड़े होकर या धरने प्रदर्शन करने से खतम होने वाला नहीं है. इसके लिए जब तक आम जनता के बीच ज़मीनी लड़ाई नहीं लड़ी जायेगी भ्रष्टाचार का खतम होना मुश्किल है. बाबा कहते हैं भ्रष्टाचारी को फाँसी लगाओ. लेकिन फाँसी कौन लगायेगा. इस देश में रोज़ नए  क़ानून बनते हैं लेकिन उनका क्या असर होता है ये सबको पता है. क्योंकि सत्ता के घर में सारे क़ानून खूँटी पर टंगे हुए हैं. जहाँ अपना हित दिखाई देता है सरकार क़ानून का इस्तेमाल करती है. जहाँ जनता की बात आती है उसी क़ानून के जरिये उस आवाज़ को कुचल दिया जाता है. जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं वही नेता भ्रष्टाचार के खिलाफ़ क़ानून भी बनाते हैं ऐसे में भ्रष्टाचार खतम होने की कोई गुंजाइश नहीं है. जो पुलिस अत्याचार के खिलाफ़ बनाई गयी है वही पुलिस खुद अनुशासित नहीं है और अत्याचार करती है ऐसे में भ्रष्टाचार कैसे खतम होगा. ऐसे में एक ही तरीका है और वो है जनता द्वारा जनता के बीच में खुली लड़ाई. न हम भ्रष्टाचार करेंगे और न सहेंगे. तभी कोई परिणाम सामने आ सकता है.
P100710_10.16मै आज़ाद पुलिस अकेले बिना किसी के सहयोग से रिक्शा चला कर जो भी कमाई होती है उसी से प्रशासन और पुलिस में फैले भ्रष्टाचार और अनाचार के खिलाफ़ लड़ाई लड़ता हूँ. पुलिस वालों के चालान काटता हूँ. इस अकेले अदना से रिक्शा चलाने वाले से गाजियाबाद की पुलिस भी घबराती है क्योंकि सच्चाई और संघर्ष  में बड़ी ताकत होती है. एक बार ठान के तो देखिये . http://azadpolice.blospot.com

ब्रह्मपाल सिंह

संस्थापक आज़ाद पुलिस

बरात घर, विकलांग कालोनी

नन्द ग्राम गाज़ियाबाद


Monday, June 6, 2011

आज़ाद पुलिस की अगली मुहिम उड़ीसा में

P180710_12.24_[01]गाज़ियाबाद में पुलिस और प्रशासन के भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने संघर्ष के पश्चात पिछले महीने मुंबई में अपनी मुहिम से लौटने के बाद आज़ाद पुलिस ब्रह्मपाल ने अपने अभियान को आगे बढाते हुए उड़ीसा के पुरी शहर को अपना नया ठिकाना बनाया है. आज़ाद पुलिस ब्रह्मपाल ने पुरी में अपनी मुहिम को १०-०६-२०१११ से प्रारम्भ करने का निश्चय् किया है. यहाँ पर अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार पुलिस व्यवस्था का जायजा लेने के साथ साथ आज़ाद पुलिस द्वारा  अपनी ड्यूटी के प्रति, अपने नियम कानूनों के प्रति उदासीन पुलिस वालों के चालान भी काटे जायेंगे और वहाँ के कमिश्नर को इनसे अवगत कराया जाएगा… इस सम्बन्ध में आज़ाद पुलिस ने पहले ही उड़ीसा सरकार, पुलिस विभाग और अन्य विभागों को पत्र लिख कर अवगत करा दिया है…

Sunday, May 22, 2011

पहले से थी तैयार मुंबई पुलिस…

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आज़ाद पुलिस का मकसद पुलिस और प्रशासन में व्याप्त बुराइयों और अनियमितताओं को उजागर करना और सुधार के लिए जागरूक करना रहा है गाज़ियाबाद में पिछले दस सालों से इस मुहिम पर अपने रिक्शे सहित संघर्ष करते हुए ख़याल आया कि क्यों न देश के अन्य राज्यों और शहरों की पुलिस व्यवस्था के बारे में जाना जाय.

इस क्रम में पहला शहर मुंबई को चुना गया और मई में मुंबई जाने की मुहिम के लिए तमाम अधिकारियों सहित मुंबई सरकार तक को सूचित कर दिया गया था. २२ मई को मुंबई जाने की तिथि नियत थी लेकिन किसी अपरिहार्य  कारणवश अपना वादा निभाने के लिए  १७ मई को ही मुंबई जाकर अपने अभियान को अंजाम देना पड़ा.

P220511_13.33१७ मई को अपने एक पड़ोसी और सहयोगी मनोज के साथ जनरल टिकट से मुंबई के लिए रवाना हुआ. ट्रेनों में जनरल डिब्बे का क्या हाल होता है वह केवल महसूस किया जा सकता है कह पाना कठिन है. फिर भी जाना था सो गए... सुबह ट्रेन से उतर कर मुंबई वी टी की भीड़ भाड़ और चकाचौंध देख कर शहर की तेज़ जिंदगी का एहसास हो गया. हल्का नाश्ता वाश्ता कर के हम कोलाबा पुलिस स्टेशन के लिए निकल पड़े. कोलाबा पुलिस स्टेशन में पहुँच कर जब अपना परिचय दिया और अपनी मुहिम के बारे में बताया तो पुलिस वालों ने बड़ी शालीनता और इज्ज़त से हमें बिठाया और बात की. हम अचंभित थे कि उत्तर प्रदेश की पुलिस होती तो शायद हमारा स्वागत झिडकियों और उपेक्षा से ही होता… लेकिन सब ने बड़े प्यार से बात की और बोले अगर आपको शहर में रहने खाने की व्यवस्था चाहिए तो पुलिस कमिश्नर आफिस जाना होगा.

P220511_13.32हम वहाँ से विदा लेकर पुलिस कमिश्नर आफिस पहुँचे तो कामकाज शुरू नहीं हुआ था. संतरी ने बताया कि दस बजे आफिस खुलेगा. लेकिन तब तक हमें वहाँ बैठने दिया. आफिस खुलने पर हमें एक अधिकारी से मिलवाया गया जिसने बड़े अच्छे ढंग से बात की और हमें सुना. हमने कहा कि हम आपके शहर में अनियमित रूप से ड्यूटी करने वाले पुलिस वालों के चालान काटेंगे. और आपको सूचित करेंगे. अधिकारी ने हमारी पूरी बात सुनी और पुलिस कमिश्नर से बात की… उनके निर्देशानुसार हमें हमारे मुंबई आने के सूचना पत्र पर कार्यालय की मुहर लगा दी और कहा कि आप पूरा शहर घूमिये.. अपना काम करिये.. कोई दिक्कत हो तो ये कागज़ दिखा देना.

वहीँ बाहर भीड़ लगी हुई थी… मीडिया की गाड़ियां अटी पड़ी थीं, कुछ मीडिया वालों ने हमसे बात तो की तो उन्होंने बोला अभी हम किसी और मुद्दे पर बिज़ी हैं, मुंबई के मशहूर डॉन दाउद के भाई पर हमला हुआ है. अभी हम आपकी मदद नहीं कर सकते. हमें बड़ा आश्चर्य हुआ. हम एक अच्छे काम के लिए आये थे और मीडिया डॉन के भाई पर हमला रिकार्ड कर रहा था.

हम शहर घुमते हुए समुद्र किनारे गेटवे आफ इण्डिया पहुँच गए. इसी बीच मुंबई के एक जानने वाले देव कुमार झा जी का फोन आया. उन्होंने काफी प्रयास किया कि हमारी मुहिम को मुंबई में लोग जानें. लेकिन सब के सब कहीं और बिज़ी थे.

 P220511_13.30हम शहर की सड़क दर सड़क टहलते रहे घूमते रहे. शहर में इतनी भीड़ इतनी ट्रैफिक होने के बावजूद जिस तरह से पूरा शहर अपनी गति से चल रहा था वो हमारे लिए अचंभित करने वाला था. पुलिस वाले कम ही दिख रहे थे. जो दिख रहे थे वो अच्छे से ड्रेस पहने हुए और टोपी लगाए हुए थे… ट्रैफिक पुलिस किनारे खड़ी थी और लोग लाल बत्ती देख कर आ जा रहे थे… ऐसे में हमें चालान काटने के लिए कोई अवसर नहीं मिल रहा था. ऐसा लग रहा था हमारे आने की पूर्व सूचना पर पुलिस वाले सचेत हो चुके थे..  गाज़ियाबाद में उत्तर प्रदेश पुलिस जैसा बिंदास, दबंग  और उजड्ड व्यवहार यहाँ नदारद देख कर हमारा मन मायूस हो रहा था… ये भी कोई पुलिस है ? इज्ज़त से बात करती है छिः … हमारे यू पी की पुलिस की हैसियत के आगे ये कुछ नहीं… मिनटों में पूरा का पूरा गाँव फूंक देंने वाले यूपी पुलिस के आगे तो ये कुछ भी नहीं थे... हमसे जितना घूमा गया हम घूमे, पुलिस वालों से मिले, उनकी ड्यूटी करने का ढंग देखा, लेकिन हमें बाहरी तौर पर कोई कमी नज़र नहीं आ रही थी… इसका मतलब बड़े छुपे रुस्तम थे… बड़े शातिर.., हमारे आने से पहले ही पूरी तरह से मुस्तैद और चुस्त हो चुके थे…

शाम तक घूमते घूमते हमें पता चल चुका था…हमारे पास कैमरा वगैरह नहीं था जिससे हम फोटो ले पाते लेकिन मुंबई की यादें आँखों में समेटते हुए हम शहर घूम रहे थे. ऐसा लगता था मुंबई पुलिस हमसे डर कर पहले से ही  पूरी तरह तैयारी कर चुकी थी Smile 

समय कम होने के कारण हमें गाज़ियाबाद के लिए निकलना था. लेकिन हमारा मुंबई आने का वादा पूरा हो गया था. हमने जगह जगह अपनी मुहिम के बारे में बताते समझाते मुंबई वीटी आ गए जहाँ ट्रेन आने वाली थी.. जनरल डिब्बे की जगह पर आधा किलोमीटर लंबी लाइन लगी हुई थी.. हम भी लाइन में लग गए., पुलिस वाले खोजी कुत्ते को लेकर लाइन के हर व्यक्ति के पास से गुजार रहे थे, तभी ट्रेन आ गयी. हमने जैसे तैसे बोगी में घुसने में कामयाबी पाई …

हो सकता है मुंबई पुलिस में बहुत कमियाँ हों लेकिन यूपी पुलिस की तुलना में उनका व्यवहार और तरीका बेहद सुधरा हुआ और काफी बेहतर लगा…हमने मुंबई पहुँचने का वादा पूरा किया था और मुंबई पुलिस ने सुधरने का…. ट्रेन ने रेंगना शुरू किया था और मुंबई पुलिस चैन की साँस ले रही थी…

Sunday, April 17, 2011

मुंबई पुलिस सावधान …21-05-2011 को हो रही है आमद आज़ाद पुलिस की.

जैसा कि आज़ाद पुलिस का संघर्ष भ्रष्टाचार के खिलाफ़, पुलिस विभाग में व्याप्त अनियमितता के खिलाफ़ और तिरंगे के अपमान के खिलाफ़ जैसे मुद्दों पर चलती रही है. इसी क्रम में आज़ाद पुलिस ने दिसंबर २०१० में गाज़ियाबाद और मुंबई के सभी वरिष्ठ अधिकारियों आदि को सूचित कर दिया था कि गाज़ियाबाद के बाद अब मुंबई जा कर पुलिस विभाग में व्याप्त अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ पुलिस वालों का सांकेतिक चालान काट कर अपने संघर्ष को जारी रखेगा. इस विषय में सभी पुलिस अधिकारियों सहित मंत्रालयों और राष्ट्रपति तक  को पहले ही सूचित किया जा चुका है… अपने पहले से तय योजना के तहत आज़ाद पुलिस मुंबई जाने को तैयार है. मुंबई पुलिस में व्याप्त अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने जागरण अभियान को लेकर आज़ाद पुलिस”ब्रह्मपाल" 19 मई 2011 को मुंबई के लिए रवाना होगा. इस इंटरनेट पर मौजूद सभी देशभक्तों, सम्माज सेवियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ विचारधारा रखने वाले सभी खास और आम इंसान से आज़ाद पुलिस की इस मुहिम में उसका साथ देने का आह्वान किया जाता है.

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Wednesday, February 16, 2011

भ्रष्टाचार की लड़ाई मे नींव के पत्थर... सादर नमन

नींव के पत्थर ऐसे होते हैं जो किसी को भले न दिखें लेकिन उनपर पूरी शानदार इमारत खड़ी होती है। पिछली पोस्ट मे इस ब्लाग के द्वारा सभी देश के नागरिकों से अनुरोध किया गया था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई मे सक्रिय रूप से भागीदार बनें और भ्रष्टाचार के खिलाफ  हस्ताक्षर अभियान मे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लें, हम सादर धन्यवाद देना चाहते हैं कि मैनपुरी से श्री शिवम मिश्रा जी ने बड़ी लगन और समर्पण के साथ इस लड़ाई मे अपना योगदान दिया और सबसे पहले तमाम लोगों के हस्ताक्षर करवा कर ई-मेल से भेजा है... हम शिवम मिश्रा जी की इच्छाशक्ति, समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा को नमन करते हैं।

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Sunday, February 13, 2011

भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनयुद्ध - हस्ताक्षर अभियान 27-फरवरी 2011

 

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भ्रष्टाचार के विरुद्ध पिछली बार दिल्ली के रामलीला मैदान मे भ्रष्टाचार के विरुद्ध जुटे जन सैलाब को देख कर कुछ तो उम्मीद जागी कि जनता अब भ्रष्टाचार से उकता गयी है। बच्चों, महिलाओं, और बुज़ुर्गों सहित हजारों की भीड़ ने रामलीला मैदान से जंतरमंतर तक मार्च किया और कसम ली कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अब किसी निष्कर्ष पर जा कर खतम होगी। इसी संकल्प के तहत 27 फरवरी 2011 को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को हजारों आम जन द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ हस्ताक्षरित ज्ञापन देने की योजना है। यह आम आदमी से आह्वान है कि  संलग्न फार्म को डाउन्लोड और प्रिंट करें और अधिक से अधिक लोग अपने हस्ताक्षर कर बाबा रामदेव के किसी क्लीनिक मे 26 फरवरी तक जमा करवा दें। अथवा हस्ताक्षरित फार्म को azadpolice@gmail.com पर स्कैन कर के मेल कर दें। आपकी आवाज़ 27तारीख को संसद और राष्ट्रपति भवन तक गूंजनी चाहिए ...

आपका ... आज़ाद पुलिस

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Saturday, January 29, 2011

२६ जनवरी की कहानी… प्रशासन की मनमानी

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अपने वादे के मुताबिक़ छब्बीस जनवरी को गाज़ियाबाद कलेक्ट्रेट पर तिरंगे की अस्मिता और इज्जत के प्रति लापरवाह प्रशासन के खिलाफ काला झण्डा ले कर जब मै पहुँचा तो मै अकेला था और वहाँ पन्द्रह बीस पुलिस वाले मौजूद थे. झंडारोहण का कार्यक्रम जिलाधिकारी कार्यालय पर न हो कर हरसाऊं पुलिस लाइन में स्थानांतरित कर दिया गया था इस लिए यहाँ न तो कोई मीडिया थी और न ही कोई आम जनता। मेरे पहुँचते ही दस पंद्रह पुलिस कर्मियों ने मुझे अकेला पा कर पकड़ लिया और हाथापाई करते हुए मेरा काला झण्डा छीन लिया। मैंने जो पत्र प्रशासन के लिए लिखे थे वह भी पुलिस वालों ने ले लिए और बताया की तुम्हारा झण्डा और पत्र आदि जमा कर दिये जाएँगे।

यद्यपि पकड़ने वाले पुलिस कर्मी तिरंगे को ले कर मेरे संघर्ष को उचित ठहरा रहे थे और बोले कि हम तो ड्यूटी से बंधे हुए हैं लेकिन हम भी तुम्हारी बात से इत्तेफाक करते हैं।  पुलिस वालों ने मेरी बात को आगे बढ़ाने की भी बात की और अपना फोन नंबर आदि भी दिया।

आप को इस संबंध मे बताना चाहता हूँ कि मै पिछले तीन चार सालों से तिरंगा के नाम पर गुटखे का नाम बदलने के संबंध मे संघर्ष कर रहा हूँ मैंने इस संबंध मे  हजारों पत्र प्रशासन को लिखे, धरने दिये, भूख हड़ताल की, लेकिन आज तक मेरी कहीं सुनवाई नहीं हुई।  इसी संबंध मे विरोध प्रदर्शन करते समय मुझे एस एस पी  रघुवीर लाल (जो शायद रास्ट्रपति से सम्मानित हैं) ने मुझे अपने कार्यालय मे बुलाया था.... आधे घंटे की बहस के बावजूद मुझे धमकियाँ दीं और  मुकदमा अपराध संख्या 371/2010 धारा 153 क भ0दँ0सं0व धारा 3 पी पी ए एक्ट के तहत मुझे जेल भेजा और मेरा रिक्शा भी जब्त कर लिया गया था । जिससे  रात भर जेल मे रहने के बाद अगले दिन जमानत पर छूटा। जब कि मै हमेशा कोई कार्यवाही करने से एक महीने पहले सभी अधिकारियों को सूचित कर देता हूँ,।

कोर्ट मे आजतक मेरी फाइल नहीं खोली गयी है और न ही मेरा दोष सिद्ध करने की कोशिश की गयी है, प्रशासन की मनमानी से तिरंगे का अपमान निरंतर जारी है... और जारी है आज़ाद पुलिस का संघर्ष भी ...

भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का ऐलान ... चलें दिल्ली

भ्रष्टाचार के खिलाप एक गैर राजनीतिक जनयुद्ध में भाग लेने का आमंत्रण.......
इसमें भाग लेना आपके लिए उतना ही जरूरी है जितना आप अपने बच्चों और परिवार की रक्षा में भाग लेते हैं.....क्योकि शर्मनाक स्तर का भ्रष्टाचार अब एक राष्ट्रिय आपदा बन चुका है जिसे देश व्यापी जनयुद्ध से ही ख़त्म किया जा सकता है........
जागरूक नागरिकों और मित्रों  30 जनवरी 2011 को नई दिल्ली के रामलीला मैदान जो श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविक सेंटर के सामने है, मिंटो रोड के पास। करीबी मेट्रो स्टेशन है नई दिल्ली रेलवे स्टेशन ,में अरविन्द केजरीवाल,किरन बेदी,अन्ना हजारे तथा देश के कई गणमान्य लोग और संस्था जो देश में भ्रष्टाचार को मिटाने तथा देश में बेहतर व्यवस्था के लिए सम्पूर्ण पारदर्शिता के लिए संघर्षरत हैं के नेतृत्व में पैदल मार्च दोपहर एक बजे से है जंतर-मंतर तक.....ये पैदल मार्च इस देश में उच्च स्तर के भ्रष्टाचारियों को सजा देने के लिए एक सख्त कानून तथा जनता द्वारा तैयार एक प्रभावी लोकपाल को भी पास करवाने के लिए सरकार पर दवाब है.........ये उस जनयुद्ध की शुरुआत है जो इस देश में भ्रष्टाचारियों के ताकत को ख़त्म करने तथा भ्रष्टाचार के खिलाप लड़ने वालों को हर हाल में सुरक्षा देने के लिए 30 जनवरी के बाद भी मजबूती से काम करेगा.....
अतः आप लोगों से आग्रह और निवेदन है की आप लोग अपना कीमती समय निकालकर इस जनयुद्ध तथा पैदल मार्च में जरूर भाग लें तथा रामलीला मैदान में 12 से 12 .30 तक जरूर पहुँच जायें....पार्किंग इत्यादि की व्यवस्था दिल्ली के ट्राफिक पुलिस तथा स्वयं सेवकों द्वारा है.....लेकिन फिर भी आप लोग सार्वजनिक यातायात के साधन जैसे बस,मेट्रो इत्यादि का ही प्रयोग करें तो बेहतर होगा......ये जनयुद्ध सिर्फ एक अरविन्द केजरीवाल या किरण बेदी का नहीं बल्कि आप सबका है तथा आप सब इसके आयोजक,प्रायोजक तथा योद्धा हैं.......इसे आप अपना युद्ध समझिये सत्य,न्याय और ईमानदारी की रक्षा के लिए.....आप अपना या अपने संस्था का पोस्टर और बेनर भी इसमें लेकर आ सकते हैं तथा इस आयोजन की खबर अपने ब्लॉग पर भी लिख सकते हैं......
आशा है आप लोग अपने दोस्तों,सहयोगियों तथा समस्त परिवार के साथ इस महायुद्ध में तन,मन से जरूर भाग लेंगे......अगर हो सके तो इ .मेल  के जवाब में  आने की सूचना की पुष्टि भी कर दें....
azadpolice@gmail.com


ज्यादा जानकारी आपको इन ब्लॉग तथा फेसबुक पर मिल जायेगा.....
http://gantantradusrupaiyaekdin.blogspot.com/2011/01/30-2011.html
http://www.indiaagainstcorruption.org/
http://jantakireport.blogspot.com/2011/01/blog-post_23.html#comments
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Wednesday, January 26, 2011

स्वाभिमान टाइम्स में आज़ाद पुलिस

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२६ जनवरी को काला झण्डा

P180710_12.24_[01]आज़ाद पुलिस ने जिलाधिकारी गाज़ियाबाद को अपने प्रार्थनापत्र में तिरंगा गुटखे का नाम बदलने सम्बन्धी ज्ञापन दिया था और एक दिन की भूख हड़ताल भी की थी, तथा यह भी चेतावनी दी थी कि यदि तिरंगे का अपनान नहीं रोका गया तो छब्बीस जनवरी को कलेक्ट्रेट पर  जिलाधिकारी को काला झण्डा दिखा कर प्रशासन के रवैये के प्रति अपना विरोध प्रकट करेगा.  इसके बावज़ूद प्रशासन द्वारा इस सम्बन्ध में कोई रूचि नहीं दिखाई गयी तो आज छब्बीस जनवरी को आज़ाद पुलिस ब्रह्मपाल काला झण्डा ले कर कलेक्ट्रेट परिसर में पहुँचे… इस से पहले कि वो अपना विरोध प्रकट करने जिलाधिकारी तक पहुँचते निहत्थे और अकेले ब्रह्मपाल को पुलिस वालों ने पकड़ लिया और काला झण्डा और उसके पत्र आदि जब्त कर लिए. इस तरह प्रशासन की शक्ति के आगे एक जज़्बा फिर बेबस नज़र आया.

Tuesday, January 11, 2011

तिरंगा गुटखे का नाम बदलने के लिए आजाद पुलिस का संघर्ष

आजाद पुलिस ब्रह्म पाल सालों से पुलिस प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और दहेज पोलियो जैसी सामाजिक मुद्दों पर अपना अथक संघर्ष कर रहे हैं... इसी क्रम में आज़ाद पुलिस द्वारा  तिरंगे के नाम पर तिरंगा गुटखा का नाम बदलने और तिरंगे के नाम पर इस तरह की नशीली चीज़ों का नाम रखने की अनुमति न दिए जाने को ले कर काफी समय से प्रशासन को सैकड़ों पत्र लिखा जा चुका है लेकिन प्रशासन द्वारा इस सम्बन्ध में न तो कोई  सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है और न लिखे गए प्रार्थनापत्रों का कोई जवाब दिया गया है. 

सरकार और प्रशासन की बंद आँखों को खोलने और तिरंगे की अस्मिता की रक्षा के लिए आज़ाद पुलिस द्वारा दिनांक १४-१२-२०१० को जिलाधिकारी गाज़ियाबाद को एक पत्र लिखा गया था जिसमे कहा गया था कि एक गुथ्खे का नाम तिरंगे के नाम पर रखने से तिरंगे को ले कर गलत सन्देश जाता है. अतः तिरंगा गुटखे पर तत्काल रोक लगनी चाहिए जब तक कि इसका नाम तिरंगे से बदल कर कुछ और न किया जाय. अन्यथा दिनांक ११-०१-२०११ को गाज़ियाबाद जिलाधिकारी के कार्यालय के सामने उपवास कर अपना विरोध दर्ज कराएगा लेकिन इस पर भी प्रशासन द्वारा कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. 

इस कारण ब्रह्मपाल ने दिनांक ११-०१-११ को जिलाधिकारी के कार्यालय पर दिन भर का उपवास कर अपना विरोध दर्ज करवाया और एक और ज्ञापन दिया कि यदि इसके बावजूद भी प्रशासन तिरंगा गुटखे का नाम परिवर्तन कराने में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाती है तो चेतावनी दी जाती है कि छब्बीस जनवरी २०११ को जिलाधिकारी कार्यालय पर तिरंगे की जगह काला झंडा फहराने की कोशिश करेगा क्योंकि प्रशासन में किसी भी तरह तिरंगे को ले कर इज्जत नहीं है. इसी लिए प्रशासन को तिरंगा फहराने का कोई अधिकार नहीं है. इसके अतिरिक्त यह भी लिखा कि यदि प्रार्थी के प्रति कोई अनहोनी या दुर्घटना होती है तो उसके लिए प्रशासन कफन न खरीदे क्योकि आज़ाद पुलिस ब्रह्मपाल ने पहले ही सोलह विभागों में अपना कफ़न जमा करवा दिया है. या तो आज़ाद पुलिस को तिरंगे की अस्मिता के लिए न्याय दिया जाय अथवा उसपर प्रशासन को कफ़न डालने की तैयारी कर लेनी चाहिए. 


तिरंगा गुटखा तिरंगे और भारत की अस्मिता का अपमान है - आज़ाद पुलिस



तिरंगा भारत की अस्मिता और स्वाधीनता का प्रतीक है. आज़ादी के काफी वर्षों बाद आम जनता को इस बात की स्वतंत्रता दी गयी है कि हर भारतीय नागरिक झंडे को फहरा सकता है. किन्तु इसके साथ यह शर्त है कि तिरंगे का किसी भी प्रकार अपमान न हो इसके लिए नियम पहले से ही तय किये गए हैं,... तिरंगा फहराने और राष्ट्रगान के भी नियम तय किये गए हैं जिसका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है -
- आजादी से ठीक पहले 22 जुलाई, 1947 को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया। तिरंगे के निर्माण, उसके साइज और रंग आदि तय हैं।
- फ्लैग कोड ऑफ इंडिया के तहत झंडे को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाएगा।
- उसे कभी पानी में नहीं डुबोया जाएगा और किसी भी तरह नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। यह नियम भारतीय संविधान के लिए भी लागू होता है।
- कानूनी जानकार डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-2 के मुताबिक, फ्लैग और संविधान की इन्सल्ट करनेवालों के खिलाफ सख्त कानून हैं।
- अगर कोई शख्स झंडे को किसी के आगे झुका देता हो, उसे कपड़ा बना देता हो, मूर्ति में लपेट देता हो या फिर किसी मृत व्यक्ति (शहीद हुए आर्म्ड फोर्सेज के जवानों के अलावा) के शव पर डालता हो, तो इसे तिरंगे की इन्सल्ट माना जाएगा।
- तिरंगे की यूनिफॉर्म बनाकर पहन लेना भी गलत है।
- अगर कोई शख्स कमर के नीचे तिरंगा बनाकर कोई कपड़ा पहनता हो तो यह भी तिरंगे का अपमान है।
- तिरंगे को अंडरगार्मेंट्स, रुमाल या कुशन आदि बनाकर भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

फहराने के नियम
- सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही तिरंगा फहराया जा सकता है।
- फ्लैग कोड में आम नागरिकों को सिर्फ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराने की छूट थी लेकिन 26 जनवरी 2002 को सरकार ने इंडियन फ्लैग कोड में संशोधन किया और कहा कि कोई भी नागरिक किसी भी दिन झंडा फहरा सकता है, लेकिन वह फ्लैग कोड का पालन करेगा।
- 2001 में इंडस्ट्रियलिस्ट नवीन जिंदल ने कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि नागरिकों को आम दिनों में भी झंडा फहराने का अधिकार मिलना चाहिए। कोर्ट ने नवीन के पक्ष में ऑर्डर दिया और सरकार से कहा कि वह इस मामले को देखे। केंद्र सरकार ने 26 जनवरी 2002 को झंडा फहराने के नियमों में बदलाव किया और इस तरह हर नागरिक को किसी भी दिन झंडा फहराने की इजाजत मिल गई।

राष्ट्रगान के भी हैं नियम
- राष्ट्रगान को तोड़-मरोड़कर नहीं गाया जा सकता।
- अगर कोई शख्स राष्ट्रगान गाने से रोके या किसी ग्रुप को राष्ट्रगान गाने के दौरान डिस्टर्ब करे तो उसके खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-3 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
- ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल की कैद का प्रावधान है।
- प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 का दोबारा उल्लंघन करने का अगर कोई दोषी पाया जाए तो उसे कम-से-कम एक साल कैद की सजा का प्रावधान है।

लेकिन आज तिरंगे की अस्मिता और सम्मान को जैसे भुला दिया गया है .... तुष्टीकरण की नीतियों ने चंद लोगों के हितार्थ तिरंगे का अपमान किसी को दिखाई नहीं दे रहा है. इसका उदाहरण अभी श्रीनगर में लाल चौक पर तिरंगा फहराने को ले कर हो रहे विवाद में साफ़ दिखाई दे रहा है. 
तिरंगे का अपमान और भी रूपों में सामने आया है. जहाँ तम्बाकू और गुटखे को निकृष्ट और जीवन के लिए घातक माना गया है वहीँ  तिरंगा नाम के गुटखे का सरकार की अनुमति से लगातार निर्माण  और बिक्री की जा रही है, गुटखे जैसी निकृष्ट चीज़ का नामकरण तिरंगे के नाम पर रखना तिरंगे का सरासर अपमान है, जब कि गुटखा खाने के बाद ये लोगों के पैरों के नीचे आता है और लोग थूकते भी हैं... यह तिरंगे का अपमान नहीं तो और क्या है. आज़ाद पुलिस को तिरंगे के नाम पर गुटखे को स्वीकृति देने के लिए और किसी तरह की रोक अथवा नाम बदलने के लिए प्रयास न करने के लिए घोर आपत्ति है. इसे तत्काल बंद होना चाहिए. 

"It will be necessary for us Indians -- Hindus, Muslims, Christians, Jews, Parsis and all others to whom India is their home -- to recognize a common flag to live and die for."
-- Mahatma Gandhi's quote on our Indian flag